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राजभाषा, राष्ट्रभाषा, और गुजरात में हिन्दी भाषा की स्थिति
राष्ट्रभाषावही भाषा हो सकती है जिसकी प्रकृति सभी प्रांतीय भाषाओं को जोड़ती है | जिस भाषामें देश की प्राचीनकाल से चली आई परंपराओं को वहन करते हुए नवीन स्थितियों का सामना करने का सामर्थ्य हों, नई चिंतन धाराओं की संवाहिका हों वही राष्ट्रभाषाहो सकती है, क्योंकि वह देश की परंपराओं एवं उसकी आत्मा का मूलाधार बनकर आई | यह कोई जरूरी नहीं कि राष्ट्रकी एक ही राष्ट्रभाषाहो, अपितु अनेक राष्ट्रों की भी एक राष्ट्रभाषाहो सकती है | (जिस प्रकार राष्ट्रीय झण्डा कपड़े का टुकड़ा नहीं, सम्पूर्ण राष्ट्र का प्रतीक होता है, उसी प्रकार राष्ट्रभाषाअपने राष्ट्रकी एकता का प्रतीक होती है |) हिन्दी समस्त भारतीय भाषाओं में सबसे ज्यादा देशीय प्राचीन परंपराओं की उतराधिकारीणी तथा नवीनतम चिन्तन धारा की संवाहिका है तथा देश की अन्य समस्त भाषाओं की पोषक है |
संसार में जो भी देश स्वतंत्र हुआ उसने पहला काम अपनी भाषा के पुनरुद्धार का किया, क्योंकि(जिस देश की कोई राष्ट्रभाषानहीं होती, उस देश की कोई पहचान नहीं होती) आयरिश कवि थामस के अनुसार ''कोई राष्ट्र अपनी मातृभाषा को छोड़कर राष्ट्रकहला नहीं सकता | भाषाकी रक्षा सीमाओं की से भी अधिक जरूरी है, क्योंकि यह विदेशी आक्रमण को रोकने में पर्वतों और नदियों से भी अधिक समर्थ है |''
खेद है कि भारतीयों ने भाषाके इस महत्व को नाममात्र को भी हृदयंगम न किया,जिसका दुष्परिणाम सांस्कृतिक अराजकता एवं राष्ट्रीय विघटन के रूपमें हमें प्रत्यक्ष दिख पड़ता है | अपनी भाषासे द्रोह करना राष्ट्रद्रोह से भी बड़ा गुनाह है |
स्वतंत्रता से पहले अंग्रेजी सत्ता ने भारतीयता को दबाये रखा, ऐसे में हिन्दी के प्रति हमारा रवैया नामशेष होता जा रहा है | हिन्दी का जब प्रश्न आता है तब प्रश्नार्थ-सा रह जाता है | भारतीय सत्ता पर अभारतीय सत्ता का प्रभाव, भ्रष्ट राजनीति, अभारतीय सत्ता का प्रभाव, भ्रष्ट राजनीति, सरकारी अफसरशाही का षड्यंत्र आदि के कारण हिंदी के सामने प्रश्नार्थ है |कार्यालय या वहीवट क्षेत्र में आज भी हमारे यहाँ हिंदी की जगह अंग्रेजी का प्रभाव रहा है, जिसे अंग्रेजियत कि दासता कहा जा सकता है | हमारे यहाँ भारतीय भाषाओं एवं हिंदी कि जगह अंग्रेजी का प्रभाव एवं उनकी गुलामी का मानस अधिक है |
देश कि दुरवस्था को दूर करने का केवल यही उपाय है कि जनता स्वभाषाके गौरव और महत्व को पहचाने | जिस राष्ट्र ने पूराकाल में अपनी आत्मा का साक्षात्कार संस्कृत के माध्यम से होना है, किन्तु हिंदी की दशा देखकर प्रश्नार्थ होना स्वाभाविक है |स्वतंत्रता के पूर्व भारत वर्ष में हिंदी होता का प्रयोग प्राय: बोलचाल आदि क्षेत्रों में सीमित था,किन्तु कालांतर में ज्यों-ज्यों यातायात तथा संसार के साधनों का विकास संसार के साधनों का विकास होता गया, त्यों-त्यों हिंदी भाषाका प्रचार-प्रसार, प्रयोग का क्षेत्र भी बढ़ता गया | हिन्दी केवल अपनी सरसता, मधुरता ओजस्विता आदि से ही भारत को मोहित नहीं करती है, प्रत्युत उसका विशाल प्राचीन साहित्य भी अपने गौरव की ओर हमें संकेत देता है | ---उनमें हमें अपने ही प्रवाह, अपनी ही संस्कृति, अपनी अमूल्य निधियों के उज्वल दर्शन होते है |
भारत एक बहुभाषी देश है | इसलिए स्वाभाविक है कि अलग-अलग राज्यों कि भाषाअलग हो, उसकी भौगोलिक स्थिति भी अलग हो, इसलिए हमारी पारस्परिक मैत्री एवं एकता के लिए एक संपर्क भाषा की नितांत है हिंदी को भारत की सच्ची संपर्क भाषाबनाने में संविधान या केन्द्र की सहायता मात्र से लक्ष्य की पूर्ति नहीं हो सकेगी |सरकारी सहयोग के साथ जन सहयोग भी अत्यंत अनुप्रेक्षणीय है | आज हिन्दी भारत के एक विशाल भूखण्ड में और जन संख्या के एक बड़े हिस्से में बोली जाती है | समय के साथ शब्द-भण्डार, व्याकरण, पद-विन्यास और उच्चारण के एक मानकीकरण की ओर हिन्दी बढ़ी | सामाजिक व्यवहार की औपचारिक भाषाके रूपमें भी राष्ट्र ही नहीं, अपितु अन्तराष्ट्रीय जन-जीवन में हिन्दी को सार्वजानिक प्रतिष्ठा प्राप्त हो चुकी है | प्रशासन, ता वाणिज्य, जन-संपर्क, जन-संचार माध्यम, कला, संगीत, साहित्य, पत्रकारिता, मनोरंजन, खेलकूद इत्यादि के क्षेत्र में हिन्दी का एक अखिल भारतीय रूप बन गया है | आज कम्प्युटर, इंटरनेट आदि के बढ़ते प्रभाव के कारण हिन्दी का प्रसार अधिक बढ़ा है | जन-संचार के माध्यमों की नई दिशा, बढ़ता प्रचार, फिल्मों का बढ़ता प्रभाव आदि के कारण भी हिन्दी का प्रचार अधिक बढ़ा है | दक्षिण भारत में भी आज फिल्मों एवं हिन्दी धारावाहिकों के बढ़ते प्रचार के कारण हिन्दी के प्रति विरोध कम होता दिखाई देता है | इतना ही नहीं हिन्दी आज विश्व व्यापार की भाषाबनने जा रही है | वह भारतीय बाजार को वैश्विक बाजार के साथ जोडना चाहती है, जिसके लिए हिन्दी सिखने पर जोर दिया जा रहा है | अत: हमारा प्रयास यह होना चाहिए कि हिन्दी हमारी राजभाषा के रूपमें सफल बने | बिहार, राजस्थान जैसे राज्यों की अपनी भाषाहोने पर भी सरकार ने संपूर्ण रूप से सम्मान के साथ राजभाषा हिन्दी को वहाँ की बिहारी भाषाहोते हुए भी राजभाषा का दर्जा दिया हुआ है और पूरा कामकाज राजभाषामें हो रहा है | इससे बड़ा अनुकरणीय उदाहरण अन्य राज्यों के लिए दूसरा कैसे हो सकता है | अन्य हिन्दीतर राज्य इस सम्बन्ध में सोच ही नहीं रहे हैं | केन्द्र से हिन्दी के मामले में अब हिन्दी भाषी राज्यों को भी अपना फैसला ले लेना चाहिए कि वे अपनी प्रांतिय भाषाके साथ रहेंगे, उसमें कम करेंगे और हिन्दी की राजभाषाके दर्जे की संकल्पना को पूरा करेंगे |
गुजरात में हिन्दी स्थिति :-
गुजरात अपनी सांस्कृतिक धरोहर और उदात्त जीवन द्रष्टि के लिए विख्यात है | गुजरात में हिन्दी भाषाऔर साहित्य के विकास की लम्बी परंपरा रही है | १२वीं शताब्दी के आचार्य श्री हेमचन्द्र सूरी से आरम्भ होने वाली यह परम्परा आज तक चल रही है |यही एक ऐसा प्रान्त है जहाँ गुजराती के साथ हिन्दी को भी राजभाषाका सम्मान प्राप्त है | हिन्दी यदि राजभाषाहै तो हिंदीभाषी क्षेत्र तथा अहिन्दीभाषी क्षेत्र – गुजरात, महाराष्ट्र, बंगाल, पंजाब, उड़ीसा, दक्षिण के चारों राज्यों तथा केन्द्रशाषित छोटे राज्यों के हिन्दी प्रेम के कारण है |गुजरात में हिन्दीके प्रचार-प्रसार के लिए कई हिन्दी प्रचारक एवं साहित्य सेवी संस्थाएँ काम कर रही है | कई पत्र-पत्रिकाएँभी हिन्दी के प्रचार-प्रसार में काम करती है |गुजरात में हिन्दी द्वितीय भाषाके रूप में व्यवहृत है | यहाँ कक्षा ४ से ९ तक सामान्य हिन्दी का शिक्षण सबके लिए अनिवार्य है | राष्ट्रीय कृत बैंकों आदि में बोलचाल के रूपमें भी हिन्दी का सर्वमान्य प्रयोग होता रहा है, किन्तु जब कार्यालयी रूपमें काम करने का प्रश्न जब हमारी सामने आता है तब अंग्रेजी मुख्य भाषाबन जाती है |यहाँ की गुजराती तथा राष्ट्रभाषाहिन्दी गौण रूप धारण कर लेती है | हिन्दी जब वैश्विक रूप धारण करने का प्रयास कर रही है तब उसका महत्व कम कर देना प्रश्न उत्पन्न करता है | शिक्षा के क्षेत्र में ँभी हिन्दी धीरे-धीरे अपना महत्व खोती हुई दिखाई देने लगी है | दशवीं से बारहवीं कक्षा में आज उसका महत्व बिलकुल कम हो गया है, जिसका कारण राजनीतिक प्रतिश्रुति ही मानी जा सकती है |
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डॉ. जशवंत एस.राठवा
प्रा. हिन्दी विभाग,
डी.डी.ठाकर आट्सॅ एवं के.जे.पटेल कोमर्स कोलेज,
खेड़ब्रह्मा-३८३२५५ जि.साबरकांठा (गुजरात)
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