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ऋग्वेद में सरस्वती नदी : एक विहंगावलोकन



         विश्व की भिन्न-भिन्न संस्कृति का विकास स्वाभाविक रूप से नदी के तट पर हुआ है | भारतीय संस्कृति में नदी लोकमाता एवं तीर्थस्वरूप मानकर पूजा की जाती है | मानव जीवन में नदी का स्थान विशेष महत्त्वपूर्ण माना जाता है| डो. र. ना. महेता कहते है कि, उत्तर गुजरात की तीन (सरस्वती, साबरमती ओंर बनास) नदियों के तट प्राचीन संस्कृति अस्मिता सभाले हुए है | किन्तु इसका व्यवस्थित संशोधन अभी प्रारंभिक दिशा में है |१ अत: इस दिशा में योग्य शोधकार्य के उदेश्य से प्रस्तुत लेख में सरस्वती नदी का विह्न्गावलोकन करने का यत्न किया गया है | वैदिक, पौराणिक और प्रबन्ध ग्रन्थो में भारत की भौगोलिक स्थिति का वर्णन संग्रहित रूप से देखने मिलता है | इस साहित्य में उत्तर गुजरात की मुख्य तीन नदीयाँ है | ऋग्वेद के मन्त्र विविध ऋषिमुनि द्वारा लिखे गये है| जिनके आश्रम सरस्वती नदी तट पर स्थित है | इस मन्त्रो में जिस प्रकार सरस्वती नदी के भौतिक स्वरूप का वर्णन दृष्टव्य होता है, इसमें माता स्वरूप और देव स्वरूप वर्णन दृष्टव्य होता है | इससे हमें ज्ञात होता है की नदी स्वरूप सरस्वती उस समय भारतीय लोगो के सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन का एक अभिन्न अंग सरस्वती नदी थी |

         वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग ४३ में सरस्वती-गंगा के सप्त धारा का वर्णन देखने मिलता है | इसके अतिरिक्त वाल्मीकि रामायण में दो प्रसंग में सरस्वती नदी का उल्लेख देखने मिलता है | प्रथम प्रसंग में राजा दशरथ के मृत्यु संदेश को पहोचाने के लिए दूत अयोध्या से कैकय देश जाता है, तब प्रवास में दूत पुष्करावती पास प्राचीन सरस्वती का दर्शन करता है | दूसरे प्रसंग में भरत अपने ननिहाल कैकय से अयोध्या आने के लिए पूर्व दिशा में प्रस्थान करते है| उस समय सुदामा, ह्रदिनी, शतद्रु, शिलावहा, सरस्वती, यमुना और भागीरथी –सप्त नदी उल्लेख, भरत आगमन प्रसंग के द्वारा रामायण में उल्लेख है | महाभारत में सफ़ल नदी के रूप में सरस्वती को स्थान मिला है | शान्तिपर्व में वेदानां मातरं पुष्पा – वेदो की माता स्वरूप में सरस्वती को सन्मान प्राप्त हुआ है | समुद्र से मिलती नदीयो में सर्वोत्तम नदी का स्थान प्राप्त है एसा वर्णन है |

         मनुस्मृति में जिस प्रदेश को ब्रह्मावर्त कहा है उस प्रदेश को महाभारत में ‘कुरुक्षेत्र’ प्रदेश कहा है | सरस्वती के दक्षिण और द्रुशध्वती के उत्तर में कुरुक्षेत्र बसा है तथा इससे आगे स्वर्गलोक है |

         अत: महाभारतकाल में कुरुक्षेत्र की सीमा निश्चित करके तथा पूर्व-पश्चिम दिशाओं में बेहती नदीयों से सरस्वती और द्रुशध्वती के संबन्ध में स्वरूप स्पष्ट होता है |

         मनुस्मृति में सरस्वती का उल्लेख करते हुए कहा है कि देवनदी सरस्वती तथा द्रुशध्वती के मध्य में देवताओंने जिस प्रदेश का निर्माण किया है वह ब्रह्मावर्त है |

         पुराणो के अनुसार वामनपुराण में सरस्वती के उद्भव का स्पष्ट वर्णन देखने को मिलता है | महर्षि मार्कण्डेय को ज्ञापन हुआ था कि उनके यज्ञ स्थल के निकट प्लक्षवृक्षो में सरस्वती निकल रही है|५ ऋषि सरस्वती की पूजा करके उसका स्तवन किया | सरस्वती ‘सन्निहित सर’ नामक सरोवर में करते हुए आगे पश्चिम दिशा में बेहने लगी | भागवत् पुराण में सरस्वती नदी को ‘ब्रह्मनदी’ कहा गया है | क्योंकि दोनो तटो पर हजारो ऋषि ब्रह्मा उपासना करते थे | उसके पश्चिम तट पर शम्याप्रास नामक आश्रम स्थित है | जर्हा यज्ञ कर्म करने के हेतु से ऋषि एकत्रित हुए थे | एसा कहा जाता है की शम्याप्रास आश्रम में रहकर वेदव्यास मुनि ने श्रीमद्भा- गवतपुराण रचा था |

         वेदो में सरस्वती नदी का उल्लेख यत्र-तत्र सर्वत्र दृष्टव्य होता है | यजुर्वेद की तैतरीय संहिता और वाजसनेयी संहिता में दृष्टव्य होता है | उसमें से अधिकतर मन्त्रो में सरस्वती अश्विनीकुमारो समकक्ष देवी स्वरूप में दर्शित किया है | सरस्वती नदी के भौतिक स्वरूप को स्पष्ट करनेवाले एक महत्वपूर्ण मन्त्र यजुर्वेद में है | पाँच एकसमान यशस्वी (महान) नदीर्या सरस्वती में समाहित हो रही है | देश में बेहते हुए सरस्वती आगे जाकर पाँच प्रमुख प्रवाह में विभाजित हो जाती है |६ मन्त्र अनुसार ज्ञात होता है कि यजुर्वेद के समय में सरस्वती की पाँच सहायक नदियाँ थी | सामवेद अनुसार सरस्वती मातृरूप मानकर उनके पास स्त्री और पुत्रो की व्यक्त करने में आती थी |

         अथर्ववेद में सरस्वती संतति प्रदान कारक, रोगनिवारक एवं महत्त्वपूर्ण रूप से पितृतृप्ति कारक देवी के रूप में माना जाता था |

         ॠग्वेद में सरस्वती नदी भौतिक, रक्षक, पोषक, रक्षक, रौद्र , आवाहन, सप्तस्वसा, माता, देवी इत्यादि स्वरूपों में निरूपण हुआ है | सरस्वती के भौतिक स्वरूप के विषय में जानकारी देते हुए कहा गया है कि पवित्र चेतनायुक्त प्रवाहो में सरस्वती नदी पर्वतो-गिरि पर उत्पन्न होकर समुद्र तक जाती है | वह नदी इस लोक में श्रेष्ठ आश्चर्यो को सचेष्ट करते हुए, नहुष राजा एवं उनकी प्रजा को घी और दूध (पोषकशक्ति वर्धकत्तत्वो) प्रदान करती है | यह सरस्वती लोहावरण युक्त रक्षक के जैसे रक्षक बनकर, जल (पोषक प्रवाह) के साथ बह रही है | यह सरस्वती रथवाहक सारथी की र्भाति दूसरे जलप्रवाहो को रोकती स्वयं गतिशील है |

         सौभाग्य प्रदायिनी सरस्वती, इस यज्ञ में हमारी स्तुति सुनकर प्रसन्न हो | यह सरस्वती श्रेष्ठ धनवाली है तथा मित्रता की भावनावालो के लिए यह दयालु है |९ हे सरस्वती देवी ! हम हव्य द्वारा यज्ञ करके, आपके पास नमनपूर्वक अधिक अन्न एवं धन प्राप्त करते है | आप हमारी प्रार्थना सुने, हम आपके अत्यंत प्रिय आवास में, आश्रयभूत वृक्ष की र्भाति विकासशील एवं परोपकारी बने रहे |१० उत्तम भाग्यशाली है सरस्वती देवी ! स्नोता वशिष्ठ ऋषि,यज्ञ के द्वारा आपके लिए खोल रहे है | हे शुभ्रवर्ण देवी ! आप आगे बढ़िये और स्नोता को धन प्रदान किजिए | आप कल्याण- कारी साधनों के द्वारा हमारी सुरक्षा करे |

         ऋग्वेद के छठे मंडल के ३२वे श्लोक में सरस्वती नदी के विषय में जानकारी मिलती है | हे सरस्वती देवी अपने शक्तिशाली वेग से, कमलनाल की र्भाति, पर्वत के तट को तोडती है, हम सरस्वती देवी की भक्ति एवं सेवा करते है, वह हमारा रक्षण करे |११ सरस्वती नदी पर्वतीय प्रदेशो में से बेहती थी | इसके विनाशकारी बलवान प्रवाह की जानकारी ऋषिमुनियों को निश्चितरूप से थी | अत: बिनती के स्वरों में ‘हमारा रक्षण कीजिए’ एसी प्रार्थना कि गई है |

         सरस्वती नदी के वेगवान प्रवाह की जानकारी हमे देखने मिलती है | सरस्वती का निरंतर प्रवाहित जल वेग से गमन होकर ध्वनि पैदा करता है | जैसे सूर्यदेव प्रकाश देते है, वैसे ही सरस्वती शत्रुओं को हराकर बहनो के साथ आती है |१२ जिस देवी सरस्वती अपने महत्त्व और तेज प्रभाव के कारण अन्य नदियों के प्रवाहो से उसका प्रवाह अत्यंत तीव्र गतिशील रथ के वेग समान है, वह गुणवती देवी सरस्वती, विद्वान स्तोताओ के द्वारा स्तुत्य है | अत: उपरोक्त श्लोको से ज्ञापन होता है की, सरस्वती नदी का प्रवाह अत्यतं वेगवान था | वह बारह महिने बेहती नदी होंगी, इस नदी को पानी हिमनदी में से प्राप्त होंगा | इससे ही वह बारह महिने बहती महानदी रही होगीं | सरस्वती का प्रवाह गंगा ब्रह्मपुत्रा समान अथवा इससे भी अधिक गतिशील होगा एसा कहा जा सकता है | वेदकालीन लोगो ने मैदानी प्रदेशो में बाढ़ का विनाशकारी पानी दूर तक फैला हो एसा सरस्वती का रौद्र रूप भी देखा होगा | हे सरस्वती देवी ! आप हमें उत्तम धन प्रदान कीजिए | हमको आपका प्रवाह दु:ख न दे | आप हमारे बंधुत्व को स्वीकार कीजिए | हम निकृष्ट स्थान पर न जाये | हमारे घरों में दुबारा प्रवेश करने की हमे अनुमति दीजिए |

सरस्वती नदी की सहायक एवं समकालीन नदियाँ

         सरस्वती नदी की सहायक नदीओं की जानकारी निम्नानुसार है | ऋग्वेद में सरस्वती ‘सप्तस्वसा’ अर्थात् सात बहनोवाली कही जाती थी | प्रियजनो में अतिप्रिय, सात बहनों से युक्त देवी सरस्वती हमारे लिए स्तुत्य है |१४ वह देवी सरस्वती तीन स्थान (प्रदेश) में बहती, सप्तधारक शक्तियों से युक्त पाँच वर्ग के लोगो को बढ़ानेवाली है | वह संग्राम समय में आवाहन करने योग्य है | सरस्वती उनकी छ: सहायक नदियों के साथ तीन प्रदेशो में बहती है और वे नदियाँ उस क्षेत्र में बसते पाँच जाति के लोक-जनसमूहो का पोषण करती है | मातृवत स्नेह सलिला सिन्धु और सप्तमे सरस्वती आदि नदियाँ पर्याप्त जल राशि युक्त होकर, प्रवाहमान रहे | वह अपने जल से परिपूर्ण अन्न और दुग्धादि देने के साथ-साथ प्रवाहमय बनी रहे |१५ उपर्युक्त यह सातवीं नदी सरस्वती है जो सिंधु सहित अन्य सहायक नदियों की माता है | उपर्युक्त मंत्र द्वारा सरस्वती अपनी छ सहायक नदियों सहित यह सभी नदियाँ एकसाथ प्रवाहित होकर बहती रहे – जो लोगो को अन्न और दूध आदि प्रदान करती है | हे गंगा, यमुना, सरस्वती, शतुद्री, परुषिणी, असिवनी तथा मरुद्वृधा, वितस्ता, सुषामा और आर्जीकीया नदियाँ आप यह स्त्रोतों सुने एवं इनका स्वीकार करे |

         दृशध्वती और अपाया नामक सरस्वती की दो सहायक नदियों का उल्लेख मिलता है | हे अन्नदेव, हम अन्नवती पृथ्वी के उत्कृष्ट स्थान में, उत्तम दिवस के श्रेष्ठत्तम समय में आपको विशेषरूप से स्थापित करते है | आप द्रषध्वती, अपाया और सरस्वती के किनारे पर रहनेवाले मनुष्यों के घरों में धनयुक्त होकर दीप्तिमान करो|

         तीन लोक (धृ, अंतरिक्ष और भूलोक ) अथवा त्रिभुवन- तिबेट में निरंतर बहते सप्तप्रवाह (अथवा नदियाँ), निरंतर बहते सप्त महासागर, वनस्पतियाँ, पर्वत, अग्नि, कुशानु नामक सोमपालक, गांधर्व, अनुचर गान्धर्वो, पुष्पनक्षत्र, हविर्भाग योग रूद्र, रुद्रगणों में श्रेष्ठ रूद्र को हम यज्ञ के रक्षण के लिए आवाहन करते है |

         महान पूजनीय सरस्वती सरयू तथा सिंधु नामक यह भक्तो के रक्षण करनारी नदियाँ तथा मातृतुल्य जल देवता हमे मधुर जल प्रदान करते रहो !

सरस्वती माता : देवी स्वरूप

         सरस्वती खिन में रहते वेदकालीन भारतीय सरस्वती नदी अति श्रध्धा एवं आदरपूर्वक माना जाता था | सरस्वती नदी उनके लिए माता एवं देवी स्वरूप प्रस्थापित थी | यह निम्नांकित श्लोक से ज्ञात होता है | हे सरस्वती ! आप माताओं में श्रेष्ठ माता, नदियों में उत्तम महान नदी तथा देवियों में अग्रगण्य देवी हो | हम मुर्ख बालक समान अत: हमे उत्तम ज्ञान प्रदान करे |

         ऋग्वेद अनुसार हे माता सरस्वती ! आपके तेजस्वी आश्रय में ही संपूर्ण जीवन- सुख आश्रित है | आप पवित्र करते यज्ञ में आनंदित बनकर, हमें उत्तम संतति प्रदान करे | हे माता सरस्वती ! आप अन्न तथा बल प्रदान करके सत्य मार्ग पर अग्रसर करनार हो | अत: देवो को प्रिय लगते, गृत्समद ऋषि द्वारा बनानेवाले, उत्तम स्त्रोत हम आपको सुनते है | आप हमारे स्त्रोतो का स्वीकार करे |२१ इला, सरस्वती और मही यह तीन देवीयाँ सुखकारी क्षयपररहित है | यह तीन देवियों ने बिछे हुए दीप्तिमान कुश के आसनों पर बिराजिये|२२ सरस्वती का एक नाम ‘भारती’ भी है और इससे हमारे देश का नाम ‘भारत’ कहा गया है | देवी भारती, भारतीय गणों के साथ आप पधारो, देवताओं और मनुष्यों के साथ देवी इला पधारिये और सारस्वत-विद्वानों की माता सरस्वती पधारो और कुश आसन पर बिराजिये |२३ अत: उपर्युक्त मंत्रो से स्पष्ट होता है की सरस्वती महावेगवान, पर्वतो में से बारह महिने बहती नदी थी | सरस्वती के तट पर बसते लोग समृध्ध थे | यह नदी स्वरूप तथा देवी स्वरूप दर्शाया गया है | पवित्र पोषण प्रदान करती, बुध्धिमतापूर्वक एश्वर्य प्रदायिनी देवी सरस्वती ज्ञान और कर्म से हमारे यज्ञ को सफ़ल बनाइए |

         सत्य, प्रिय बोलने की प्रेरणा प्रदान करती, मेघावी लोगो के यज्ञानुष्ठान की प्रेरणा प्रदायिनी देवी सरस्वती हमारे इस यज्ञ का स्वीकार करके हमें उत्तम वैभव प्रदान किजिये |२५ देवी सरस्वती नदी स्वरूप में अति जल प्रवाहित करती है, वह सुमति को जाग्रत करती देवी, सरस्वती सभी याजको की प्रज्ञा को प्रखर बनाती है |२६ जैसे सात महान नदियाँ समुद्र को मिलतीं है, हम हमारा संपूर्ण हविष्य अन्न अग्निदेव को प्राप्त हो एसा यत्न करते है | अन्य महान देवो के लिए हविष्य अन्न पर्याप्त है या नहीं –यह हम जानते नहीं अत: आप अन्न आदि वैभव हमे प्रदान कीजिए |२७ हे सर्वज्ञाता अग्निदेव ! पृथ्वी के केन्द्रस्थान, उत्तर वेदो की मध्य में हम आपको स्थापित करते है | हमारे द्वारा समर्पित हवियो को आप ग्रहण करे |२८ इन श्लोको में सिंधु नदी के वेग को रोकना तथा पृथ्वी के उत्तम स्थान पर यज्ञकार्य का वर्णन है | जो कैलाश के आसपास के विस्तार की शक्यता दर्शाता है |

         ऋग्वेद मंडल-५ में हमारे समस्त लोगो के द्वारा पूजनीय सरस्वती देवी, ध्रुलोक से और पर्वतो से हमारे यज्ञ में आगमान करे, धृत समान क्रांतिमती वे देवी हमारी हवियो को स्वीकार करती, स्व-इच्छा से हमारे सुखारी वचन सुनती है |२९ इन्द्रदेव आपके रक्षण साधन सहित हमारा रक्षण करे | जल उछालती-उभराती सरस्वती हमारा रक्षण करे | पर्जन्यो से उत्पन्न औषधियाँ तथा पिता समान अग्निदेव को रक्षण हेतु आवाहन करते है |

         हे सरस्वती देवी, आपने देवताओ के निंदा करनेवालों का नाश किया, आप एसे ही दुष्टों का नाश कीजिए | मानवो के लाभ हेतु, आपने संरक्षित भू-भाग प्रदान किया है | हे वाजिनीवति ! आपने ही मनुष्यों के लिए जल प्रवाहित किया है |३१ हे वशिष्ठ ! आप प्रवाहो में शक्तिशाली सरस्वती के लिए महान स्त्रोतो का गान करे | ध्रुलोक और पृथ्वी में बसते सरस्वती के श्रेष्ठ स्त्रोतो से वंदना करे |३२ हे शुभ्रवर्णा सरस्वती देवी ! आपकी कृपा से मनुष्य दिव्य और पार्थिव दोनों प्रकार के अन्न प्राप्त करते हे| आप हमारा रक्षण करे | मरुतो के साथ मित्रता करती नदी, हविदाताओ को धन से परिपूर्ण करे |

         हितकारी सरस्वती कल्याणकारी है। सुंदर प्रवाहमान, अन्न प्रदादिनी, सरस्वती देवी हमे चैतन्य बनाये। आप जिस तरह जमदग्नि ऋषि द्वारा पूजित हुई हो, वैसे ही आप वशिष्ठ से अधिक स्तुत्य हो |

         महाभारत, रामायण, पुराण और वैदिक साहित्य में सरस्वती नदी का उल्लेख विभिन्न प्रकार में प्राप्त होता है | ऋग्वेद में ज्यादातर नदी को महानता गाने का प्रयत्न किया है | परंतु इसमें विशेषकर सरस्वती नदी के विविध स्वरूपों, तत्कालीन भौगोलिक स्थान और सांस्कृतिक आधार प्राप्त होते है | नदियाँ मानवजीवन कितनी उपयोगी है यह स्पष्ट करने वैदिक ऋषियो ने सरस्वती नदी के महत्व का गान किया है | हिमालय कैलाश मानसरोवर से गुजरात के प्रभासक्षेत्र तक, अरब सागर से मिलने पूर्व लुप्त सरस्वती नदी का रोमांचक इतिहास हमे अमूल्य सांस्कृतिक विरासत की भेद दी है | आज गुजरात में सरस्वती नदी लोग में ‘कुंवारिका नदी’ के रूप में मानी जाती है | इसी कारण सरस्वती नदी नर्मदामैया की र्भाति अधिक पूजनीय है | पुराण काल से मातृश्रध्दा तर्पण विधि में सरस्वती नदी का अद्वितीय महत्त्व रहा है | छात्रों में देशभक्ति और राष्ट्रप्रेम की भावना तथा पवित्र सरस्वती नदी के इतिहास को उल्लेखित करने तथा समाज उपयोगी कार्य हेतु विचार-विस्तार के उदेश्य से मेरा यह लेख इस दिशा में गतिप्रेरक बने एसा मेरा नम्र निवेदन है |

पादटीप

  1. वाड्मय पारिजात, लेखक- र्डा. समीर प्रजापति, प्रथम आवृति- २००९
  2. एषा सरस्वती पुण्या नदीनां उत्तमा नदी | प्रथमा सर्व सरितां नदी सागर गामिनी || महाभारत अनु. पर्व., व्यास, संपा. श्रीपाद दामोदर सातवलेकर, स्वाध्याय मण्डल पारडी, सं. १९७८, १४६/१७
  3. दक्षिणेन सरस्वत्या उत्तरेण द्वषदवतीम् | ये वसन्ति कुरुक्षेत्रे ते वसन्ति त्रिविष्टये || वही, वनपर्व, ८१.१७५
  4. सरस्वती द्वषद्वत्योर्देवनधोर्यदन्तरम् | तं देवनिर्मित देशं ब्रह्मावर्त प्रचक्षते || मनुस्मृति, सस्तुं साहित्यवर्धक कार्यालय, अमदावाद, ९मी आवृति, सं. २००७, २/१७
  5. मार्कण्डेय मुनिना संतप्तं परमं तप | यत्र यत्र समायाता प्लक्षजाता सरस्वती || वायुपुराण, र्डा. अमृत उपाध्याय, महर्षि वेदविज्ञान अकादमी, अमदावाद, ३२/१
  6. ॐ पंच नध्य: सरस्वती मपियन्ति सस्त्रोतस: | सरस्वती तु पञ्चधा सो देशे भवत्सरित् || यजुर्वेद, संपा. वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य, प्रका. ब्रह्मवर्चस, शांतिकुंज, हरिद्वार (उ. प्र.) तृतीय आवृत्ति-२०००, ३४/११
  7. सरस्वती पितरौ हवन्ते दक्षिणायज्ञमभिनक्ष: माणा: ||आसद्यास्मिन बहर्षि माद्यध्वमनी वारुष आ चेह्यस्मै || अथर्ववेद, संपा. पं. श्रीपाद दामोदर सातवलेकर, स्वाध्याय मण्डल पारडी, चतुर्थ संस्करण – १८/१/४२
  8. एका चेतत् सरस्वती नदीनाम् सुचिर्यति गिरिभ्य आसमुद्रात् || शयस्चेतन्ति भुवनस्य भूरेर्धृतं पयो दुदुहे नाहुषाय || प्र क्षोदसा द्यायसा सस्त्र एषा सरस्वती धरुणमायसी पू: | प्रबाबद्धाना रथ्येव याति विश्वा अपो महिना सिंधुरन्या: ॥ ऋग्वेदसंहिता, सरळ गुजराती भावार्थ सहित भाग-१-२, संपा. वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य, प्रका. ब्रह्मवर्चस, शांतिकुंज, हरिद्वार, संवत-१४९५, ७/९५/१-२
  9. वही, ७/९५/४
  10. वही, ७/९५/६
  11. वही, ६/६१/२
  12. वही, यस्या अनंतो अहुतस्तावेषश्चरिष्णुरर्णव: | अमश्चरति रोऋछत् || ६ /६१ / ८-९
  13. वही, सरस्वत्यभिनो नेषि वस्योमाप सफरी: पयसा मा न आ मद्यक | जुषस्व न: सख्या वेश्या च मा त्वत्क्षेत्राण्यरणानि गन्म || ६/ ६१/ १४
  14. वही, उत न: प्रया प्रियासु सप्तस्वसासुजुष्टा सरस्वती स्तोम्या भूत || ६/६१/१०
  15. वही, ७ /३६ /६
  16. वही, १० /७५ /५
  17. वही, १७/ ३/२३-२४
  18. वही, १०/६४/८
  19. वही, १० /६४ /९
  20. वही, अम्बितमे नदीतमे सरस्वती | अप्रशस्ता इव स्मसि प्रश्तिमम्ब नस्कृधि || २/४१/१६
  21. वही, २/४१/१७-१८
  22. वही, १/१३/९
  23. वही, ७/२/२८
  24. वही, पावका न: सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती | यज्ञं वष्टु द्ययावसु: || १ /३ /१०
  25. वही,१/३/११/
  26. वही,१/१०/१२
  27. वही,१/७१/७
  28. वही,३/२९/४
  29. वही,५/४३/११
  30. वही, ६/५२/६
  31. वही, ६/६१/३
  32. वही, ७/९६/१
  33. वही, ७/९६/२
  34. वही, ७/९६/३

अन्ताराष्ट्रीयसंस्कृतसम्मेलनम्, श्रीस्वामीनारायणमन्दिरम्, सरधारम्, ७-८ दिसम्बर २०१३ में प्रस्तुत शोधपत्र |

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र्डा. बलाभाई एस. रबारी,
संस्कृत विभागाध्यक्ष, श्रीमती आर. डी. शाह आटर्स & श्रीमती वी. डी. शाह
कोमर्स कोलेज, धोलका जि. अहमदावाद-382225

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