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बेतवा बहती रही"उपन्यास में नारी विमर्श


'बेतवा बहती रही'उपन्यास में मैत्रेयी पुष्पा ने नारी समस्या को लेकर नारी की स्थिति का वर्णन किया है| आज भी नारी किस तरह से घर,परिवार या समाज से शोषित हो रही है उसका जिक्र करते हुए लेखिका ने उर्वशी के पात्र द्वारा विधवा नारी-उत्पीडन की कथा का चित्रण किया है|उनका शोषण ससुराल वाले नहीं बल्कि मायकेवाले ही करते हैं| आज भी नारी को किस तरह से दबाया जा रहा है, और उनका शोषण किस हद तक होता रहा है उनका जिक्र भी पुष्पाजीने अच्छी तरह से किया है| आज भी स्त्री सामाजिक बन्धनों से जकड़ी हुई है,क्या?उन्हें अपना स्वतंत्र जीवन जीने का कोई अधिकार नही है?वह घुटन भरी जिंदगी जीती है| क्या,नारी सदैव सहन करने,सबकुछ झेलने और संघर्ष करने के लिए ही पैदा होती है?इस प्रकार उपन्यास पढ़ने से मन में कई तरह के प्रश्नों उठते हैं|

लेखिका ने उपन्यास में पुरे एक अंचल की कथा का वर्णन किया है| जिस में एक स्त्री की वेदना, पीड़ा, संत्रास की कथा है| आज भी स्त्री पहले तो अपने परिवार से शोषित होती है,बाद में समाज से होती है| नारी आज भी शिक्षा से वंचित है| अशिक्षा के कारण समाज में जो रीति परंपरा चली आ रही है,उनका जिक्र भी लेखिका ने किया है| वैसे भी स्त्री सामाजिक बन्धनों में जकड़ी हुई है और वह कभी मुक्त नही हो पायेगी| पुष्पाजी ने पारिवारिक संबधों में बदलाव और उर्वशी जैसी विवश नारी की यातनामय स्थिति को चित्रित करते हुए पुरुष प्रधान समाज की और इशारा किया है|

बेतवा की बेटी याने उर्वशी को ऐसा लगता है कि मैं दू:ख का भाग्य लेकर ही जन्मी हूँ| जहाँ दरिद्रता का घोर साम्राज्य था,जैसे वह घर में पैदा हुई और खाने के लिए भी लाले पड़ने लगे थे, लेकिन सुंदरता की मूर्ति जैसी थी उर्वशी| माता-पिता ने अजित को ही पढ़ाया,क्योंकि वह घर का आधार स्तभ बन सके| उर्वशी को शिक्षा से वंचित रखते हैं, क्योंकि लड़की को पराई घर की अमानत समजते हैं| उर्वशी को पढ़ाने के लिए माता-पिता सोचते भी नही हैं|यहाँ एक बेटा-बेटी के बिच भेद-भाव दिखाई देता है| वैसे भी बेटी के पैदा होने से ही वे दहेज के ऋणी होने की अनुभूति से वह चिंतित थे| दहेज देने में असमर्थ होने के कारण उर्वशी के पिता गाँव- गाँव घूमकर आते हैं,लेकिन उन्हें लड़का नही मिलता| वैसे भी भाई का स्वभाव पहले से ही स्वार्थमय दिखाई देता है| वे नही चाहता था की अपनी बहन की शादी का खर्च इन्हें उठाना पड़े| वह ऐसा रिश्ता चाहता था कि उनसे कुछ मदद मिल जाए और उनको खर्च न करना पड़े| इसी कारण वह अपनी बहन का रिश्ता चार बच्चों के पिता के साथ तय कर देता है|

पुष्पाजी ने आधुनिक समाज में आज जो पारिवारिक सम्बन्धों में जो बिखराव आ रहा है,उनका भी बहुत अच्छी तरह से यहाँ जिक्र किया है| मीरा के पिता बरजोरसिहं अपने स्वार्थ वृति के कारण पुरे सुख सम्पन परिवार का बिखराव कर देता है| काका-दाउ,भाइयों में दुश्मनी हो जाती है| इस प्रकार हम देखते हैं,कि आज भी समाजमे अपनापन जैसा कुछ रहा ही नही यह सब आज के बदलते रिश्ते और व्यक्ति की सोच के आधार पर परिवार बिखरता जा रहा है| सामाजिक,पारिवारिक,उलझनों के कारण आज अपनापन जैसा कुछ रहा ही नहीं|

आज नारी मात्र एक वस्तु बनकर रह गई है|उर्वशी की शादी सर्वदमन के साथ हो जाती है,परन्तु वह खुशी के दिन ज्यादा दिन तक नही रहते, क्योकि पति की मृत्यु हो जाती है| पति की मृत्यु के बाद भाई अजीत उर्वशी के घर आना-जाना बढ़ जाता है| अजीत जेठ दाऊ के बारे में भला-बुरा ख देता है,और लड़ाई झगड़ा करवा देता है,उर्वशी को कहता भी है कि-"हम जे ख रहे थे कि तुम डरती काहें को हो?देवेश के नाम तो जमीन अपने आप आ जाएगी| कुछ रोंडा-अडंगा अटकायेंगे तो फिर हमने भी घास नही छिली अब तक| अपने भानिज के हिस्सा की जमीन इनके बाप से घरा लेंगे हम|"१ अगर उर्वशी चाहती तो अपने भाई की बात का विरोध करती लेकिन उन्होंने ऐसा नही किया| उनका भी अपना स्वतंत्र जीवन था,फिर भी वह उसके साथ जाने के लिए तैयार हो जाती है| बेटे देवेश को छोड़कर मायके आ जाती है| क्या?चाहती थी,या मजबूर थी| इस प्रकार जो स्त्री करना नही चाहती फिर भी विवश होकर उन्हें सब करना पड़ता है|उर्वशी को माँ के द्वारा पता चलता है,किअजीत भैया ने मीरा के पिता के साथ उनकी शादी तय कर दी है| वह सोचती है कि इससे तो अच्छा मर जाना और वह नदी में कूद जाती है,लेकिन उन्हें मल्लाह द्वारा बचा लिया जाता है| बाद में वह अपना भाग्य या नियति समझकर स्वीकार कर ल्रती है| तब वह अपनी माँ से कहती है कि -"जो हमारे भाग में बदौ है अम्मा,उसे कौन पलट सकते है,वह तो होंके ही रहते हैं|"२

इस प्रकार उर्वशी अपना भाग्य मानकर सब स्वीकार कर लेती है| इससे कई प्रश्न भी पैदा होने क्या,यह उनकी नियति है,या फिर उसे मजबूर किया जा रहा था?यह प्रश्न खड़ा होता है| परिवार के स्वार्थ के कारण स्त्री को किस हद तक जाना पड़ता है,क्या स्त्री एक मात्र वस्तु है,भोगी है या फिर सहनशीलता की मूर्ति है?पुष्पाजी का भी यही उदेश्य रहा है कि नारी का भी अपना एक स्वतंत्र जीवन है| उसे जीने का अधिकार है,मगर हमारा समाज उसे जीने नहीं देता|

अंत में मीरा से उर्वशी कहती है कि -"अजीत भइया से भाई-बहन कौ सम्बन्ध रहो कहाँ है| बहन तो उनके लिए रूपइया बनके रह गयी -केवल कागज के कुछ नोट| उर्वशी तो कब से खतम हो गयी मीरा !भिट गऔ वो संबंध .....|संबंध खून के नहीं होत,अब तो मानोगी न !संबंध तो काकाजू से हतो मीरा|वे तुम्हारे नाना हमारे धरमपिता !उनके दुनिया से उठवे के संग ही राजगिरी की धरती परदेश हो गयी -वहाँ की गलियाँ बिरानी|फिर अब ...?"३ इस संदर्भ में उर्वशी ने जो झेला था,भोगा था,सहन किया और उनकी जो पीड़ा थी वह मीरा के सामने खोल देती है| मेरा दू:ख दर्द को मेरे परिवारवालों ने कब समझा था| अपने स्वार्थ के लिए उन्हों ने बहन के साथ किये गए व्यवहार को देखकर हम भी कह सकते हैं किबहन भाई के लिए एक रूपइया या पैसा थी| इस तरह वह अपना घुटनभरा जीवन जीती है| लेखिका ने प्रस्तुत उपन्यास में अनेक प्रश्न से घेरा समाज को दिखाने का प्रयास किया है| अपने जीवन का दू:ख,दर्द सहन करके उनके सामने संघर्ष करते हुए तिल-तिलकर मिटती रहती है| चुपचाप वह सहेती रही | परिवार ने अपना स्वार्थ देखा मगर बेटी की पीड़ा,दर्द को नहीं देखा और अंत में वही पीड़ा को सहते हुए विवश यातनामय जीवन जीती हुई ,वह बेतवा में समा जाती है|

निष्कर्ष:

उपन्यास में उर्वशी द्वारा घूंटनभरी जीवन जीती नारी जो अपने साथ हो रहे अन्याय का विरोध नही कर पाती| उर्वशी जैसी अनेक स्त्रियाँ का जीवन दर्द भरा है,एक स्त्री की बात नही है| ऐसी असंख्य नारियाँ के जीवन में दर्द भरा पड़ा है| पुष्पाजी ने आधुनिकता की और भी इशारा किया है| आज समाज शिक्षित होते हुए भी स्त्री का शोषण कर रहा है| उर्वशी के पात्र द्वारा अशिक्षित ग्रामीण स्त्री की कथा | मन की यन्त्रणाओं की पीड़ा का वर्णन किया है| उनकी जैसी अनेक स्त्रियां है जो आज भी परिवार या समाज से शोषित हो रही है| क्या?उनको जीवन दू:ख झेल ने को ही मिला है?अपने जीवन के प्रति उनका कोई अधिकार नही होता?जैसे अनेक प्रश्न से धीरा उपन्यास है| मगर यह सच है कि नारी सदैव नारी ही रहती है-सहने के लिए,झेलने के लिए,और झुजने के लिए,दूसरों के खातिर अपने जीवन को अंधकार में ढकेल देती है| क्योंकि आज भी स्त्री को केवल देहमात्र की वस्तु समजता है| इस प्रकार यह भी एक समाज और पुरे अंचल की व्यथा -कथा को लेकर लेखिका ने समाज के सामने नारी समस्या को उजागर करने का प्रयास किया गया है|

संदर्भ सूची :

  1. बेतवा बहती रही,मैत्रेयी पुष्पा,पृ.सं.८३
  2. वही,पृ.सं.११६
  3. वही,पृ.सं.१०४

संदर्भ ग्रन्थ सूची :

  1. बेतवा बहती रही, मैत्रेयी पुष्पा, किताब घर, नयी दिल्ली,२०१०|

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बारीस जयंतिलाल .बी
गुजरात केन्द्रीय विश्वविद्यालय, गांधीनगर
सेक्टर -३०

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