‘सोन मछली’ उपन्यास में नारी - चेतना “मशवरा कोई तो दे फौरन बगावत का उन्हें, सोन मछली जाल में फँसकर कहाँ आजाद होगी।’’ 1 प्रवासी भारतीय हिन्दी साहित्यकार भारतेन्दु विमल द्वारा रचित ‘सोन मछली’ उपन्यास को यू. के. हिन्दी समिति लंदन द्वारा सम्मानित किया गया हैं। ‘सोन मछली’ उपन्यास मुंबई के फ़ारस रोड पर रहती उन हज़ारों लड़कियों के दारुण सच को प्रस्तुत करता हैं, जो बेबस, लाचार, पीड़ित, शोषित और यातनाग्रस्त हैं। ये लड़कियाँ कठ-पूतली की तरह नाचती-गाती, हँसती-हँसाती और खुश नज़र आती हैं। लेकिन ह्रदय में दुख और आक्रोश की ज्वाला भरी हुई हैं। इस उपन्यास की भूमिका में कमलेश्वर लिखते हैं कि “ ‘सोन मछली’ में जो कुछ भारतेन्दु विमल ने लिखा है वह भारत में उपजती-उपजी बाज़ारवादी संस्कृति में यातना सहती औरत-वेश्या के त्रासद यथार्थ की एक बेहद उदास कर देनेवाली क्लांत कथा हैं।’’2 घर से होटल, होटल से घर और जब छुट्टी का दिन होता हैं तब मुजरा...बस यही इन लोगों की जिंदगी हैं। बाहर की दुनिया से इनका कोई लेना-देना नही हैं।
मुंबई में कुकुरमुत्ते की तरह जगह-जगह फैले बीयर बारों में चाँदनी, रेहाणा, सोनम, शकीला, अंजु, और रीमा जैसी कई लड़कियाँ नाचने के लिए मजबूर हैं। भारतेन्दु विमल ने “सभ्यता और संस्कृति के गटर- संसार की इस सतत् प्रवाहित गटर-गंगा को जनमानस की धरती पर उतारा हैं!’’3 जिस तरह गटर में कीड़े रेंगते हैं और बाहर निकल ने की कोशिश करते हैं, उसी तरह ये लड़कियाँ इस गंदगी और सड़ांधभरे दम- धोटू वातावरण से मुक्त होकर सभ्य समाज का हिस्सा बनना चाहती हैं। लेखक ने एक ऐसी दुनिया से हमारा परिचय करवाया है,जहाँ आए दिन लड़कियों को बहला फुसलाकर लाया जाता हैं। कभी नौकरी का वादा करके, तो कभी शादी का। फिर दलाल के हाथों उन्हें बेचकर उनसे मुजरें करवाए जाते हैं। आश्चर्य की बात तो तब है,जब बाप खुद अपने शराब और जुए के पैसे जुटाने के लिए बेटी को कोठे वालियों के यहाँ बेच देता है। चाँदनी को उसकी मौसी ने धोखे से पच्चीस हजार रुपए में बेच दिया। चाँदनी तो “ नर्सिग की ट्रेनिंग कर रही थी, माँ की देखरेख और पैसों की कमी के कारण छोड़नी पडी।’’4 गामा भाई इंसानियत की दुहाई देते हुए कहते है कि अगर इंसानियत जैसी कोई चीज होती तो – “फ़ारस रोड और फ़ारस रोड जैसे दूसरे इलाकों में रहनेवाली हज़ारों वेश्याएँ, इंसानियत की गंदगी धो-धोकर भरी गई बदबूदार नालियों के घेरे में अपनी जिंदगी गुजार ने के लिए मजबूर न होती।’’5 इस उपन्यास का नायक चन्दर इन लड़कियों की जिंदगी को करीब से देखता हैं,परखता हैं, उनका साथ देता हैं और उन्हें इस जिल्लतभरी और अपमानजनक जिंदगी से बाहर निकालकर सभ्य समाज का हिस्सा बनाने की कोशिश करता हैं। सोनम, अंजु, चाँदनी और रीमा जैसी लड़कियाँ अपने हक और अधिकार की लड़ाई लड़ना जानती हैं। अपने शील और नारीत्व की रक्षा करने के लिए खुद शक्ति- स्वरुपा बन जाती हैं। जिसका तरोताजा उदाहरण हैं,इस उपन्यास का एक पात्र अंजु! अंजु और अन्य लड़कियों के साथ घटी घटनाएँ सचमुच दिल दहलादेने वाली और रौंगटे खडे कर देने वाली हैं। फ़ारस रोड पर रहती हज़ारों लड़कियों की जिंदगी हमेशा दाव पर लगी रहती हैं। कब क्या हो जाए किसीको मालूम नहीं! फ़ारस रोड की गली में एक हादसा हो गया। इसकी आख़िरी गली में दो लड़कियाँ रहती थी। दोनो साथ मे होटल में डान्स करने जाती थी। जब दोनो बिकानेर से वापस मुंबई आई तो अपने साथ चौदह साल की छोटी बहन को भी साथ लेती आई। जब दोनों बहनें डान्स करके सुबह घर लौटी तो – “सारा कमरा खून से भरा हुआ था। बीचों- बीच फ़र्श पर ही छोटी बहन की लाश पड़ी थी...बच्ची के बदन पर कपड़े नहीं थे। पास ही खून में लथपथ, फटे पड़े थे। गरदन में चाकू मारा था। दोनों हाथों की नाड़ियाँ काट दीं थी। पेट में भी कई घाव थे। चेहरा सूजा था।...एक औरत ने जल्दी से अपनी साड़ी का आधा हिस्सा फाड़ कर लाश पर डाला था। लुटी हुई इज्ज़त वाली लाश की लाज बचाने के लिए।’’6 वास्तव में यह सब किया धरा जग्गा का था। वह इस इलाके का दादा है,उसने कई लड़कियों के साथ बलात्कार किए हैं। रात में शराब के नशे में किसी भी लड़की के साथ बलात्कार कर मार देता हैं। लेकिन फिर भी पुलिस उसका कुछ भी बिगाड़ नही पाती। जग्गा से पुलिस को पैसे मिल जाते हैं, तो पुलिस भी पक्के सबूत न मिलने का बहाना कर उसे छोड देती हैं। सोनम की छोटी बहन अंजु को भी आज जग्गा ने कहा कि “आज रात आउँगा...कुंडी मत लगाना वर्ना पड़ोसी जाग जाएँगे।’’7 अंजु सहम गई। उसके मन में भय और आक्रोश की दूहरी हलचल मच गई। वह हारने वालों में से नही थी। वह अपने नारीत्व पर होने वाले पाशविक हमले का सामना करने के लिए मन से तैयार हो गई। अंजु ने हेमेन की सहायता से जग्गा को शबक सिखाने की ठान ली। ताकि उसके जैसी दूसरी लड़कियों की जिंदगी आज के बाद उजड़ न जाए, उन्हें अपनी जिंदगी से हाथ धोना न पडे। अंजु अपने कमरे में रोज की तरह सो गई। उपर माले पर भेष बदलकर हेमेन को सुलाया। अंदर से कुंडी नही लगाई। रात दो बजे जग्गा आया और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया। “फिर जग्गा अंजु पर डाका डालने की तैयारी में था।’’8 तभी जग्गा की चीख सुनाइ दी साथ ही में अंजु की भी। “अंजु के दाएँ हाथ में चाकू...बाएँ हाथ में सिमटता हुआ पौरुष। आँखों में चमक।”9 अंजु ने आज अपनी नारी- शक्ति का परिचय दे ही दिया। स्त्री निर्बल- अबला मात्र नहीं हैं, उसमें भी आत्मसम्मान की लौ प्रज्जवलित हैं। वह अपनी लड़ाई खुद लड़ना जानती हैं। वह केवल रो- धोकर बैठी नही रहती, लेकिन आवश्यकता पड़ने पर महिसासूर मर्दिनी बनकर बुराईयों का नाश करने पर उतारु हो जाती हैं। होटल में नाचनेवाली हर एक लड़कियाँ चाहती हैं कि उसकी शादी हो, उनका अपना घर हो, बच्चे हो, प्यार करनेवाला पति हो और सभ्य समाज में इज्जतदार जिंदगी जीए। लेकिन इन लड़कियों के लिए यह सब मात्र सपना बनकर ही रह जाता हैं। सोनम, अंजु, चाँदनी और रीमा जैसी कुछ एक लड़कियाँ चन्दर के दिशा- निर्देश मिलने पर इस बाजारवादी संस्कृति से बाहर निकलकर अच्छी जिंदगी जीने लगती हैं। अंत में भावसार साहब इन पीड़ित लड़कियों के लिए महिलाश्रम खोलने का प्रस्ताव रखते है और कहते हैं कि “मैंने मुंबई के सारे कोठे बंद करने का बीड़ा नहीं उठाया लेकिन उन लड़कियों के लिए अपनी जान लगा दूँगा जो कोठे से निकलकर खुली हवा में साँस लेना चाहती हैं।”10 महिलाश्रम खोलने के लिए अनिल दत्त एक लाख रुपए का दान देते है। सोनम ने अपना सोने का ब्रेसलेट दिया। और इस तरह महिलाश्रम खोलने के लिए एक किलो सोने के गहने और हज़ारों रुपए भावसार साहब को मिल गए। “महिलाओं द्वारा इस तरह अपने गहने उतार कर देने का एक उदाहरण तब मिला था जब भारत पर विदेशियों ने हमला किया था।...आज नारीत्व पर होने वाले हमलों से उसकी रक्षा के लिए गहनें उतारे गए थे।’’11 अत: नारी अपने देश और ‘स्व’ के प्रति सदियों पहले भी जागृत थी, और आज भी जागृत हैं... संदर्भ पुस्तक :-
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र्डा. उमा मेहता |
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