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ईलेक्ट्रोनिक माध्यम और हिन्दी

ગसंचार या संप्रेषण में भाषा मुख्य माध्यम है । हम सब यह जानते हैं कि बिना माध्यम के संचार असंभव है । भाषा पहला विकसित माध्यम है, जिसने संचार को व्यवस्था दी । वर्तमान में हिन्दी की दशा और दिशा दोनों का फैलावा हुआ है । विभिन्न क्षेत्रों में इसके नए-नए प्रयोगों की गहरी प्रतीक्षा है । जनसंचार एक व्यापक एवम् सामूहिक प्रक्रिया है । अपने भावों, विचारों, मत-मान्यताओं आदि व्यापक जनसमुदाय तक पहुँचाने एवं अन्य सदस्यों की प्रतिक्रियाओं को समझने के लिए मनुष्य अपने आदिकाल से ही प्रयत्नशील रहा है ।

पुराणों में नारदजी को एक पत्रकार जनसंपर्क अधिकारी तथा संवाददाता के रूप में चित्रित किया गया है, जो विभिन्न देवी-देवताओं के बीच संपर्क स्थापित करते हैं, सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं । औद्योगिक क्रांति के साथ-साथ संचार में एक नई हलचल हुई । संवाद के साधनों में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए । रेडियो, टेलीफोन, रेल, मोटर, वायुयान, डाक आदि के क्षेत्र में विकास के कारण संवाद भेजने के साधनों में क्रांति हुई । ईलेक्ट्रोनिक के मीडिया ने टी.वी., कम्प्यूटर, सेटेलाईट, आदि आधुनिकतम साधन उपलब्ध करा दिए हैं, जो पूरे विश्व में एक गाँव के समान आपस में जोड़ सकते हैं ।

आधुनिक जनसंचार माध्यमों में सर्वाधिक शक्तिशाली माध्यम आज टेलीविजन है । रेडियो के बाद जन्मा यह इलेक्ट्रानिक माध्यम अत्यंत लोकप्रिय है । कम्प्यूटर, उपग्रह, चैनल, केबल, टी.वी. नेटवर्क, इंटरनेट, फैक्स, मोबाइल आदि न जाने कितने ही उपकरण हमें जनसंचार की बेहतर सुविधाएँ दे रहे हैं । जनसंचार माध्यमों विशेष रूप से टेलीविजन के विभिन्न कार्यक्रमों में आज प्रयुक्त हो रही हिन्दी भाषा की प्रकृति की ओर गया है जो भाषा-प्रयोग मानकर सचेत करना चाहता है कि एक दिन हम अपनी भाषा को न खो बैठें । हम विभिन्न टी.वी. चैनलों पर समाचार देखते-सुनते हैं । उनको ध्यानपूर्वक सुनकर देखे, तो प्रतिदिन उनकी भाषा-संरचना और शब्द प्रयोग करने में कोई न कोई त्रुटि अवश्य मिल जाएगी । टी.वी. के माध्यम से यह सही है कि हिन्दी को एक नया प्रसार क्षेत्र मिल रहा है ।

टेलीविजन ने हिन्दी के नाम पर एक नई हिन्दी (दूरदर्शन) को जन्म दिया है । इस सम्बन्ध में हम दूरदर्शन में हिन्दी भाषा के प्रयोग पर शोधकार्य भी कर सकते हैं । टी.वी. के विविध प्रसारणों में भाषा का अध्ययन करने हुए हम पाते हैं कि इन चैनलों में हिन्दी की उस भाषा को जन्म दिया है । आम जनता की बोल-चाल और कामकाज की भाषा ही हिन्दी भाषा है ।

हिन्दी फिल्मों में पहले से ही हिन्दी के क्षेत्रीय रूपों बोलियों / उपभाषाओं का प्रयोग होता चला आ रहा था । फिल्म निर्देशकों ने सोचा कि फिल्म आम आदमी के मनोरंजन के लिए बनाई जाती है, इसलिए उसमें सरल-सहज और बोलचाल के निकट की भाषा होनी चाहिए ताकि जनसामान्य उसे समझ सके । फिल्मों में अंचल विशेष या क्षेत्र विशेष के जनजीवन को जीवन्त किया जाता है । उनमें उन अंचल विशेष या क्षेत्र विशेष की बोली, लोकगीत, लोकसंस्कृति, वेशभूषा, मैले, त्यौहार, रहन-सहन, खान-पान आदि को वाणी मिली है ।

फिल्मों की भाँति ही टेलीविजन के धारावाहिकों में हिन्दी के विविध रूप मिलते हैं । वहाँ भी फिल्मों जैसा माहौल है । वैसे ही अपेक्षाएँ हैं, वैसे ही तकनीकी हैं । इन धारावाहिकों (सीरियल्स) में संस्कृतनिष्ठ हिन्दी से लेकर, मानक हिन्दी, हिन्दुस्तानी, क्षेत्रीयता और स्थानीयता से रंगी हिन्दी, विभिन्न बोलियों की शब्दावली से युक्त हिन्दी भाषा का बराबर प्रयोग हो रहा है । हम सुप्रसिद्ध धारावाहिक ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ को याद करें, जिनमें संस्कृतिनिष्ठ हिन्दी और मानक हिन्दी का ही प्रयोग था । विज्ञापनों में हिन्दी का जैसा रूप मिलता है वह अन्यत्र कम ही मिलता है । टेलीविजन पर दर्शक को और रेडियो के श्रोता को अपनी ओर खींच सकते हैं । टेलीविजन और रेडियो पर प्रसारित सन्देशों की ओर ध्यान दें । इनमें प्राय¬: शुद्ध या मानक हिन्दी और सरलता के लिए कही-कहीं हिन्दुस्तानी हिन्दी की शब्दावली को अपनाया जाता है, ताकि जनसामान्य सन्देश को आसानी से समझ सके, ग्रहण कर सके ।

आज हिन्दी को टेलीविज़न जैसे आधुनिक शक्तिशाली जनसंचार माध्यम से एक व्यापक धरातल मिला है । देश-विदेश में हिन्दी फिल्मों तथा गीत-संगीत की लोकप्रियता बड़ी है । पड़ोशी देश पाकिस्तान, बंग्लादेश से लेकर खाड़ी देशों और रूस, चीन, जापान, अमेरिका, मारीशस, फीजी, दक्षिण अफ्रिका आदि के साथ ही जर्मनी, अमेरिका और ब्रिटेन आदि देशों में हिन्दी फिल्मों तथा गीत-संगीत के प्रति अभिरूचि बढ़ी हैं । आज जनसंचार माध्यम जनता की भाषा को अपनाकर जनता तक पहुँचने का प्रयास करता है । जनसंचार माध्यम आज जिस भाषा को प्रयोग हिन्दी के रूप में कर रहे हैं, क्या वह अच्छी हिन्दी हैं ? आज हिन्दी में अंग्रेजी के शब्दों का घालमेल हुआ है । टेलीविजन कार्यक्रम बनानेवाले और प्रस्तुत करनेवाले हिन्दी उन्हें मजबूरी में या मजे के लिए ही एक विदेशी भाषा की तरह बोलनी पड़ रही है । जैसे उदाहरण देखें – ‘एक नया टूथपेस्ट Try किया । तू यहाँ आती है तो मेरी Position वर्षा के Compromise साथ होती है ।

सारांश यह है कि आज जनसंचार माध्यम की दोहरी मानसिकता चल रही है । इस दोहरी मानसिकता में से हिन्दी को अपना रास्ता ढूँढने की जरूरत हैं । आज भी भारतीय भाषाओं पर अंग्रेजी कथ्य, तथ्य, शिल्प आदि का वर्चस्व है । राष्ट्रीय अस्मिता और स्वाभिमान के प्रतिकुल हम अंग्रेजी में ही विज्ञापन-कार्य सम्पन्न करने में गौरव का अनुभव करते हैं । किन्तु हिन्दी की शब्दावली भी सर्जना और संप्रेषणा की क्षमता से पूर्ण हो गई हैं, अतः भारतीय भाषाओं के साथ हिन्दी में ही होना चाहिए ।

हिन्दी भारत के जातीय गौरव, भक्ति और आध्यात्मिकता को वाणीबद्ध करने में सक्षम है । स्वतंत्रता, एकता और अखण्डता की पुर्नप्रतिष्ठा में समर्थ हैं । जीवन मूल्य, संस्कृति, मानवता और लोकतंत्र की संरक्षिका हैं । हिन्दी संघर्ष की भाषा है । संस्कार और मानवीय अस्मिता की भाषा है । आज हिन्दी में तकनीकि, पारिभाषिक और औद्योगिक शब्दावली के अजीब बताकर इसे तिरस्कृत किया गया हैं । लेकिन हिन्दी भारत-भारती के साथ विश्वभारती के रूप में अपने को स्थापित करेगी।

अतः राष्ट्रीय स्वतंत्रता, स्वाभिमान और अस्मिता, संस्कार और सह अस्तित्व की भाषा के रूप में हिन्दी को स्वीकार किया जाए ।

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प्रो.श्री महेन्द्रकुमार एल. वणकर
(हिन्दी विभाग)
सरकारी विनयन कॉलेज, बायड
जि.साबरकांठा (गुजरात)
मो.9978768795

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